घायल संजय सेतु और चुप जनप्रतिनिधि! लखनऊ में उठा जनता का सवाल

महेंद्र सिंह
महेंद्र सिंह

विधानसभा भवन के सामने खड़े होकर सामाजिक कार्यकर्ता संजीव सिंह राठौर ने वो सवाल उठाया, जिसे देवीपाटन मंडल के लोग सालों से पूछ रहे हैं— आख़िर घायल संजय सेतु का निर्माण कब होगा?

घाघरा नदी पर बना Sanjay Setu आज सिर्फ एक पुल नहीं, बल्कि सरकारी उदासीनता का live example बन चुका है। पुल जर्जर है, आवाजाही जोखिम भरी है, लेकिन सिस्टम अब भी “फाइल अंडर प्रोसेस” मोड में है।

Devipatan Mandal की Life Line, लेकिन Priority List में गुम

बहराइच, गोंडा, श्रावस्ती और बलरामपुर को जोड़ने वाला संजय सेतु daily commuters के लिए survival route है। व्यापार और agriculture supply chain की backbone है। मरीजों और छात्रों के लिए time vs life का सवाल है। इसके बावजूद, पुल की हालत ऐसी है कि लोग हर सफर में दुआ भी साथ लेकर चलते हैं।

पुल घायल है, लेकिन फाइलें पूरी तरह फिट हैं।

विधानसभा के सामने सीधा सवाल: जवाब कब मिलेगा?

संजीव सिंह राठौर ने जनप्रतिनिधियों से साफ शब्दों में पूछा— क्या चुनावी भाषणों में आने वाला संजय सेतु, सिर्फ वोट तक ही सीमित रहेगा?

उन्होंने कहा कि वर्षों से पुल के पुनर्निर्माण की मांग की जा रही है, लेकिन न तो कोई time-bound plan सामने आया, न ही construction की कोई visible start date

सरकार से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि अब सिर्फ सर्वे और मीटिंग नहीं, ground work चाहिए।

Silence is also a Statement

राठौर का कहना था कि जनहित के इस मुद्दे पर जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी अपने आप में एक जवाब है। जब पुल चलता है तो नेता दिखते हैं,
लेकिन जब पुल टूटता है, तो responsibility invisible हो जाती है।

पुल टूटने पर सिस्टम कहता है – “देखेंगे” जनता गिरने पर कहती है – “अब कब?”

Public Pressure ही बनेगा असली Solution

उन्होंने साफ किया कि संजय सेतु का मुद्दा अब सिर्फ infrastructure का नहीं, बल्कि public accountability का बन चुका है।

जनता अब safe travel चाहती है। emergency access चाहती है और सबसे ज़रूरी, clear timeline चाहती है।

राठौर ने कहा कि “जब तक संजय सेतु सुरक्षित नहीं बनेगा, तब तक जनता की आवाज़ भी शांत नहीं होगी।”

पुल नहीं तो सवाल चलते रहेंगे

संजय सेतु आज देवीपाटन मंडल के लिए एक पुल से ज़्यादा, एक test case है— सरकार की प्राथमिकता, प्रशासन की संवेदनशीलता और जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही का। और जब तक ये टेस्ट पास नहीं होता, तब तक सवाल सड़क से विधानसभा तक गूंजते रहेंगे।

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